अगर आप खेती करते हैं और अतिरिक्त कमाई करना चाहते हैं, तो मूंग की खेती आपके लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है। मूंग की फसल कम अवधि वाली होती है और इसकी खेती साल में दो बार की जा सकती है।
इस लेख के ज़रिये हम आपको मूंग की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु, बीज, खेत की तैयारी कैसे करें, मूंग बीजने की विधि अथवा सही समय, कितना पानी दें, कौन सी खाद डालें आदि विस्तार में बताएँगे।
मूंग उगाने के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
मूंग की खेती के लिए गर्म जलवायु उपयुक्त होती है। इसकी खेती के लिए 20 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे अच्छा माना जाता है। वहीं ज्यादा बारिश वाली जगहों पर इसकी खेती नहीं करनी चाहिए। अच्छी जल निकास वाली दोमट या बलुई दोमट मिट्टी मूंग की खेती के लिए उपयुक्त होती है।
मूंग उगाने के लिए खेत की तैयारी
मूंग की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए। सबसे पहले खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा कर दें। जुताई के 15-20 दिन बाद दोबारा हल चलाकर खेत को समतल कर लें। अगर मिट्टी बहुत सख्त है, तो तीन जुताईयां भी की जा सकती हैं। खेत तैयार करते समय खरपतवार साफ कर दें।
मूंग के बीज का चुनाव
मूंग की कई उन्नत किस्में बाजार में उपलब्ध हैं, जिनका चुनाव आप अपनी जलवायु और मिट्टी के हिसाब से कर सकते हैं। भारत में मूंग की कुछ लोकप्रिय किस्मों में शामिल हैं:
- पूसा बैसाखी (Pusa Baisakhi)
- पी.ए.यू – 114 (PAU- 114)
- टी.यू – 14 (TU – 14)
- एम.एल (ML 131)
- डी.बी – 17 (DB – 17)
बुवाई के लिए हमेशा अच्छी गुणवत्ता का, साफ और रोगमुक्त बीज ही इस्तेमाल करें। बीज की दुकान से प्रमाणित बीज खरीदना बेहतर होता है।
बीज का उपचार
बुवाई से पहले बीज का उपचार करना फायदेमंद होता है। बीजों का उपचार करने के लिए आप निम्नलिखित में से किसी एक तरीके का इस्तेमाल कर सकते हैं:
- राइजोबियम कल्चर विधि: इस में 500 ग्राम बीजों के लिए 600 ग्राम राइजोबियम कल्चर को 1 लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ घोलकर उपचारित किया जा सकता है। उपचारित बीजों को छाया में सुखाकर ही बुवाई करें।
- ट्राइकोडर्मा विधि: इस में 3 ग्राम ट्राइकोडर्मा वर्दी पाउडर को 1 किलो बीजों के साथ मिलाकर उपचारित किया जा सकता है। इससे मिट्टी जनित रोगों की रोकथाम में मदद मिलती है।
मूंग की बुवाई का समय और तरीका
खरीफ की फसल
- बुवाई का समय: जून से जुलाई का महीना, जब मानसून आ चुका हो।
- बीज की मात्रा: 8 से 10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
- बुवाई की दूरी: कतारों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 5 से 7 सेंटीमीटर का अंतर रखें।
रबी की फसल
- बुवाई का समय: फरवरी का अंत से मार्च का मध्य।
- बीज की मात्रा: 6 से 8 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।
- बुवाई की दूरी: खरीफ की फसल जैसी ही दूरी, यानी कतारों के बीच 30 से 45 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 5 से 7 सेंटीमीटर का अंतर रखें।
मूंग की बुवाई की विधि
- बीजों को सीधे खेत में छिटाकर या कतारों में बोया जा सकता है। कतारों में बुवाई करने से खेत का अच्छा प्रबंधन किया जा सकता है और खरपतवार नियंत्रण में भी आसानी होती है।
- कतारों में बोने के लिए, कतारों के बीच 30-45 सेंटीमीटर और पौधों के बीच 5-7 सेंटीमीटर का फासला रखें।
- बीजों को ज्यादा गहराई में न बोएं। आमतौर पर 3-4 सेंटीमीटर की गहराई ठीक होती है।
- बुवाई के बाद बीजों को हल्के से मिट्टी से ढक दें और हल्की सिंचाई कर दें।
मूंग की खेती में कौन सा खाद डालें?
मूंग की फसल को ज्यादा नाइट्रोजन की जरूरत नहीं होती है। आमतौर पर खेत में अच्छी मात्रा में एल.सी.बी फ़र्टिलाइज़र्स द्वारा निर्मित नव्यकोष आर्गेनिक खाद अथवा जैविक खाद डालने से पर्याप्त नाइट्रोजन मिल जाती है। 15-20 टन प्रति हेक्टेयर सड़ी गोबर की खाद भी खेत में डाली जा सकती है।
मूंग की फसल में कितना पानी देना चाहिए?
मूंग की फसल में सिंचाई की ज्यादा जरूरत नहीं होती है। हल्की बारिश हो जाए तो पर्याप्त है। अगर बारिश नहीं हो रही है, तो 10 से 12 दिनों के अंतर पर सिंचाई कर सकते हैं। ध्यान दें कि जलभराव की स्थिति न बनने दें।
मूंग की खेती में आने वाले रोग और कीट
मूंग की फसल में आने वाले कुछ प्रमुख रोग और कीटों के बारे में नीचे जानकारी दी गई है:
- इल्ली: इल्ली पत्तियां खाकर फसल को नुकसान पहुंचाती हैं। नीम के बीजों का कीटनाशक बनाकर या बाजार में उपलब्ध जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल करके इल्लियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
- माहू: माहू पत्तों का रस चूसकर पौधों को कमजोर कर देता है। नीम का अर्क या प्याज -लहसुन का पेस्ट इनको दूर करने में मदद करता है। गंभीर स्थिति में कृषि विशेषज्ञ की सलाह पर ही रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें।
- जड़ गलन रोग: यह रोग मिट्टी में जमा अतिरिक्त पानी के कारण होता है। इसलिए जलभराव की स्थिति न बनने दें और सिंचाई का ध्यान रखें।
- पत्ती झुलसा रोग: यह रोग फफूंद के कारण होता है। इस रोग से बचाव के लिए खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करें। बीजों का उपचार करें और रोगग्रस्त पत्तियों को नष्ट कर दें। जरूरत होने पर ही कवकनाशक दवाओं का छिड़काव करें।
मूंग की फसल कितने दिन में तैयार होती है?
आमतौर पर मूंग की फसल बुवाई के 60 से 70 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है। कटाई के लिए दरांती या हाथ से काटने वाले औजारों का इस्तेमाल किया जा सकता है। कटी हुई फसलों को धूप में कुछ दिनों के लिए सुखा लें। इसके बाद थ्रेशिंग विधि द्वारा दालों को अलग कर लें।
निष्कर्ष
मूंग की खेती भारत के किसानों के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकती है। यह कम लागत में होने वाली लाभदायक फसल है। इस लेख में दी गई जानकारी और कृषि विशेषज्ञों की सलाह लेकर आप सफलतापूर्वक मूंग की खेती कर सकते हैं।