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चौलाई की खेती कब और कैसे करें सम्पूर्ण जानकारी

Updated: 6 days ago

amaranth farming

चौलाई, जिसे लाल साग के नाम से भी जाना जाता है न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद है, बल्कि किसानों के  लिए अतिरिक्त आय का एक बढ़िया जरिया भी है। 


आज हम चौलाई की खेती कब और कैसे करें इसके बारे में विस्तार से जानेंगे। इसमें चौलाई की बुआई से लेकर कटाई तक सब शामिल होगा।


चौलाई की खेती करने का सही समय (बुवाई का समय)


चौलाई एक गर्मी और आद्रता पसंद करने वाली फसल है। इसकी खेती साल में दो बार की जा सकती है:


  1. पहली बुवाई: फरवरी-मार्च का महीना। इस दौरान बुवाई करने से गर्मी के मौसम  में ताजी चौलाई की  पत्तियां मिलती हैं।

  2. दूसरी बुवाई: जुलाई का महीना। मानसून के मौसम में बुवाई करने  से बारिश के सहारे अच्छी  पैदावार  प्राप्त होती है।


आप अपने इलाके के मौसम को ध्यान में रखते हुए बुवाई का समय चुन सकते हैं। अगर गर्मी ज्यादा पड़ती है, तो थोड़ा देर से भी बुवाई की जा सकती है।


चौलाई की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी


चौलाई की खेती के लिए किसी खास तरह की मिट्टी की जरूरत नहीं होती है। यह विभिन्न प्रकार की मिट्टी में  उगाई जा सकती है, लेकिन बलुईं-दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है। यह मिट्टी  जल निकास में अच्छी होती है, जो चौलाई के पौधों के लिए जरूरी है।


चौलाई के बीजों का चयन


चौलाई के कई प्रकार होते हैं, जिनमें लाल चौलाई, हरी चौलाई और चमगादर चौलाई शामिल हैं। आप अपने  इलाके में लोकप्रिय किस्म के बीजों का चुनाव कर सकते हैं। कृषि विभाग या फिर किसी विश्वसनीय बीज  भंडार से अच्छी गुणवत्ता के बीज खरीदना बेहतर होता है।


चौलाई के खेत की तैयारी


बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाएं:


  1. खेत की गहरी जुताई करें, ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।

  2. खेत में मौजूद खरपतवार और जड़ों को साफ कर दें।

  3. बुवाई से 15-20 दिन पहले खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें।


चौलाई के बीजों की बुवाई


चौलाई के बीज दो तरीकों से बोये जा सकते है:


  1. छिड़काव विधि: इस विधि में बीजों को सीधे खेत में समान रूप से छिड़का जाता है। इसके बाद हल्के  हाथों से मिट्टी पाट दें।

  2. रोपण विधि: इस विधि में पहले नर्सरी में बीजों को बोया जाता है और फिर कुछ दिन बाद पौधों को खेत  में रोप दिया जाता है। रोपण विधि से आम तौर पर ज्यादा पैदावार मिलती है।


चौलाई के बीज बहुत छोटे होते हैं, इसलिए इन्हें बोते समय ध्यान रखें कि बीजों के ऊपर ज्यादा मिट्टी न पड़े।


खरपतवार नियंत्रण


चौलाई की अच्छी पैदावार के लिए खरपतवार नियंत्रण बहुत जरूरी है। खरपतवार पौधों से मिट्टी के पोषक  तत्वों और पानी की कमी हो सकती है। खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:


  1. बुवाई के 20-25 दिन बाद पहली निराई गुड़ाई करें।

  2. जरूरत के अनुसार निराई गुड़ाई दोहराई जा सकती है।

  3. खरपतवार नाशक दवाओं का प्रयोग कम से कम करें। इनका इस्तेमाल सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही करना  चाहिए और कृषि विशेषज्ञों की सलाह अवश्य लें।


चौलाई के लिए सिंचाई


चौलाई एक सूखा सहनशील फसल है, लेकिन नियमित सिंचाई से इसकी पैदावार बढ़ाने में मदद मिलती है।गर्मी के मौसम में हफ्ते में 2-3 बार सिंचाई कर सकते हैं। 


मानसून के मौसम में बारिश के आधार पर सिंचाई की मात्रा कम की जा सकती है। सिंचाई हमेशा सुबह या  शाम के समय ही करें, ताकि पानी का वाष्पीकरण कम हो।


खाद और उर्वरक का प्रयोग


बुवाई से पहले खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद या एल.सी.बी फ़र्टिलाइज़र्स द्वारा निर्मित नव्यकोष आर्गेनिक खाद डालना पर्याप्त होता है। 


अगर जरूरत महसूस हो, तो बुवाई के 30 दिन बाद थोड़ी मात्रा में यूरिया या DAP खाद का प्रयोग किया जा  सकता है। खाद और उर्वरक का प्रयोग हमेशा मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही करना चाहिए।


चौलाई की कटाई करना


चौलाई की कटाई बुवाई के लगभग 30-40 दिन बाद की जा सकती है। जब पौधे 12-15 इंच ऊंचाई के हो  जाएं और उनकी पत्तियां खाने के लिए उपयुक्त हों, तब पहली कटाई कर ली जाती है।


कटाई के बाद चौलाई दोबारा से उपजती है, इसलिए आप एक ही फसल से 2-3 बार कटाई कर सकते हैं।कटाई हमेशा सुबह के समय करें, ताकि पत्तियां ताजी रहें।


चौलाई की पैदावार बढ़ाने के लिए टिप्स


निम्नलिखित टिप्स अपनाकर आप चौलाई की पैदावार को और भी बेहतर बना सकते हैं:


  1. बीजों को उपचारित करें: बुवाई से पहले बीजों को उपचारित करने से बीमारी लगने का खतरा कम होता है। इसके लिए बीजों को 5 ग्राम प्रति किलो  की दर से कार्बेन्डाजिम से उपचारित किया जा सकता है।

  2. अंतरवहन फसल लगाएं: चौलाई के साथ पालक, मेथी जैसी कम उंचाई वाली सब्जियों को अंतरवहन  फसल के रूप में लगाया जा सकता है। इससे खेत का पूरा उपयोग हो जाता है और मिट्टी के पोषक  तत्वों का भी बेहतर सदुपयोग होता है।

  3. जैविक खेती अपनाएं: रासायनिक खादों के प्रयोग से बचें और जैविक खेती के तरीकों को अपनाएं। इससे न सिर्फ सेहतमंद चौलाई पैदा होगी, बल्कि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी बनी रहेगी।

  4. फसल चक्र अपनाएं: लगातार एक ही खेत में चौलाई की खेती ना करें। फसल चक्र का पालन करें  और कुछ समय बाद किसी दूसरी फसल को लगाएं। इससे मिट्टी की सेहत अच्छी रहती है और  चौलाई की पैदावार भी बेहतर होती है।


चौलाई की खेती के फायदे


चौलाई की खेती ना सिर्फ किसानों के लिए आय का एक अच्छा जरिया है, बल्कि इसके कई स्वास्थ्य लाभ भी हैं:


  1. चौलाई में प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन A और C जैसे पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं।

  2. चौलाई का सेवन बच्चों के विकास के लिए बहुत फायदेमंद होता है।

  3. यह पाचन क्रिया को दुरुस्त रखती है और एनीमिया की समस्या को भी दूर करने में मदद करती है।


चौलाई की खेती एक कम लागत वाला और लाभदायक विकल्प है। इसकी खेती के लिए किसी खास देखभाल  की जरूरत नहीं होती है और थोड़ी सी मेहनत से अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है। उम्मीद है कि ऊपर दी गई जानकारी चौलाई की खेती करने में आपकी सहायता करेगी।

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