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एरोपोनिक खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

  • LCB Fertilizers
  • Feb 22
  • 1 min read

एरोपोनिक खेती क्या होती है?


एरोपोनिक खेती (Aeroponic Farming) एक आधुनिक खेती तकनीक है जिसमें बिना मिट्टी के पौधों की  जड़ें हवा में रखी जाती हैं और पोषक तत्वों को धुंध (Mist) के रूप में दिया जाता है। इस पद्धति में पौधों की  जड़ें पोषक तत्वों से भरपूर पानी की बूंदों से पोषित होती हैं। 


aeroponic kheti kya hoti hai aur isko kaise kiya jata hai

यह तरीका पारंपरिक खेती से अलग और अधिक वैज्ञानिक है। भारत में, जहां जल संकट और भूमि की  उपलब्धता एक बड़ी समस्या है, एरोपोनिक खेती किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है।


एरोपोनिक खेती कैसे की जाती है?


  1. संरचना तैयार करना: एरोपोनिक खेती के लिए एक विशेष प्रकार की संरचना तैयार की जाती है, जिसमें  पौधों की जड़ों को हवा में लटकाया जाता है।

  2. पोषक तत्वों का छिड़काव: एक विशेष नोजल सिस्टम से जड़ों पर पोषक तत्वों की धुंध स्प्रे की जाती है, जिससे पौधे तेजी से बढ़ते हैं।

  3. रोशनी और तापमान का नियंत्रण: इस प्रणाली में तापमान और नमी को नियंत्रित किया जाता है, जिससे  फसलों की गुणवत्ता बेहतर बनी रहती है।

  4. पानी की बचत: एरोपोनिक खेती में बहुत कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे यह जल संकट वाले  क्षेत्रों के लिए लाभदायक है।


एरोपोनिक खेती के क्या लाभ हैं?


  1. कम पानी की खपत: पारंपरिक खेती की तुलना में 90% कम पानी की आवश्यकता होती है।

  2. ज्यादा उत्पादन: कम जगह में अधिक फसल उगाई जा सकती है।

  3. रसायन मुक्त खेती: मिट्टी के अभाव में कीटनाशकों की जरूरत कम होती है।

  4. तेजी से बढ़ने वाली फसलें: पौधे सामान्य खेती से 30-50% तेजी से बढ़ते हैं।

  5. कम जगह में अधिक फसल: छतों और छोटे स्थानों पर भी खेती संभव होती है।

  6. मौसम का प्रभाव नहीं: नियंत्रित वातावरण में फसलें उगने से मौसमी बदलाव का असर नहीं पड़ता।


क्या भारत में एरोपोनिक खेती लाभदायक है?


भारत में एरोपोनिक खेती धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है, खासकर शहरी क्षेत्रों और कम भूमि वाले किसानों के  बीच। हालांकि, इसकी सफलता कुछ कारकों पर निर्भर करती है:


  1. बाजार की मांग: जिन फसलों की मांग अधिक है, जैसे पत्तेदार सब्जियां, स्ट्रॉबेरी, टमाटर और जड़ी-बूटियां, उन्हें उगाने से ज्यादा मुनाफा हो सकता है।

  2. प्रौद्योगिकी की उपलब्धता: एरोपोनिक सिस्टम की सही जानकारी और उपकरणों की उपलब्धता से  सफलता बढ़ सकती है।

  3. शुरुआती लागत: यह पारंपरिक खेती से महंगी होती है, इसलिए शुरुआती निवेश के लिए उचित योजना  जरूरी है।

  4. सरकारी सहायता: भारत सरकार हाइड्रोपोनिक और एरोपोनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी और सहायता प्रदान कर रही है।


एरोपोनिक खेती की लागत कितनी है?


एरोपोनिक खेती की लागत कई कारकों पर निर्भर करती है:


  1. सिस्टम सेटअप: छोटे स्केल पर शुरू करने के लिए ₹1 लाख से ₹5 लाख तक का खर्च आ सकता है। बड़े कमर्शियल सेटअप के लिए यह लागत ₹10 लाख से ₹50 लाख तक हो सकती है।

  2. रखरखाव और संचालन: नियमित पोषक तत्वों, पानी और बिजली की लागत ₹10,000 से ₹50,000 प्रति माह हो सकती है।

  3. अन्य खर्च: बीज, पोषक घोल, और तकनीकी रखरखाव पर भी खर्च होता है।


एरोपोनिक खेती के नुकसान क्या हैं?


  1. उच्च प्रारंभिक लागत: पारंपरिक खेती की तुलना में इसकी शुरुआती लागत अधिक होती है।

  2. तकनीकी जानकारी की आवश्यकता: किसानों को इसकी तकनीक को समझने और लागू करने के लिए प्रशिक्षण की जरूरत होती है।

  3. बिजली पर निर्भरता: यह विधि पूरी तरह से बिजली पर निर्भर होती है, जिससे बिजली कटौती की स्थिति  में परेशानी हो सकती है।

  4. सिस्टम की देखभाल जरूरी: नोजल और पानी की सप्लाई सही तरीके से काम करे, इसके लिए  नियमित निगरानी जरूरी होती है।


एरोपोनिक खेती भारत में एक उभरती हुई तकनीक है, जो कम पानी और कम जगह में अधिक उत्पादन की  क्षमता रखती है। हालांकि, इसकी लागत और तकनीकी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए, इसे अपनाने  से पहले सही योजना बनाना जरूरी है। 


सरकार की सहायता, प्रशिक्षण और सही रणनीति के साथ, यह भारतीय किसानों के लिए एक लाभदायक  विकल्प बन सकता है।


यदि आप एरोपोनिक खेती शुरू करना चाहते हैं, तो पहले छोटे स्तर पर प्रयोग करें और फिर बड़े स्तर  पर विस्तार करें।

 
 
 

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