
धान भारत की मुख्य फसल है और इसकी खेती हर राज्य में की जाती है। भारतीय किसान अक्सर अधिक पैदावार के लिए सही किस्मों की खोज में रहते हैं। आज हम धान की अधिक पैदावार वाली किस्मों के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
धान की किस्मों का परिचय
भारत में धान की कई किस्में उगाई जाती हैं। इनमें से कुछ किस्में अधिक पैदावार देने वाली होती हैं। ये किस्में विशेष रूप से भारतीय किसानों के लिए विकसित की गई हैं ताकि वे कम लागत में अधिक फसल प्राप्त कर सकें।
धान की उच्च पैदावार वाली प्रमुख किस्में
निम्नलिखित किस्में धान की ऊच पैदावार वाली किस्में है। इनके साथ इनकी अधिक्तिम प्रति हेक्टेयर पैदावार के बारे में, इन किस्मों के लक्षण तथा ये मुख्यतः यह किन राज्यों में उगाई जाती है वह भी बताय गया है।
स्वर्णा (Swarna)
पैदावार: 5-6 टन प्रति हेक्टेयर
लक्षण: यह किस्म रोग प्रतिरोधी है और इसमें पानी की अच्छी बचत होती है।
कृषि क्षेत्र: ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार
आई.आर-64 (IR-64)
पैदावार: 6-7 टन प्रति हेक्टेयर
लक्षण: जल्दी पकने वाली और अधिक पैदावार देने वाली किस्म।
कृषि क्षेत्र: उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा
पूसा बासमती 1121
पैदावार: 4-5 टन प्रति हेक्टेयर
लक्षण: सुगंधित और लंबी दाने वाली किस्म।
कृषि क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश
सुपर बासमती
पैदावार: 5-6 टन प्रति हेक्टेयर
लक्षण: उच्च गुणवत्ता और अधिक पैदावार।
कृषि क्षेत्र: पंजाब, हरियाणा
धान की खेती में बीज का चयन और तैयारी
अधिक पैदावार के लिए सही बीज का चयन महत्वपूर्ण है। किसानों को प्रमाणित और उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना चाहिए। बीजों को बुवाई से पहले 24 घंटे के लिए पानी में भिगो कर रखना चाहिए और फिर छाया में सुखाना चाहिए।
धान की खेती में भूमि की तैयारी
धान की खेती के लिए भूमि को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। भूमि की जुताई कर उसे समतल करना चाहिए ताकि पानी का सही प्रबंधन हो सके। मिट्टी की जाँच कर किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह से उर्वरक की सही मात्रा डालनी चाहिए।
धान की बुवाई की विधि
धान की बुवाई मुख्य रूप से दो तरीकों से की जाती है: सीधे बुवाई और रोपाई। अधिक पैदावार के लिए रोपाई विधि बेहतर मानी जाती है।
रोपाई विधि: पहले नर्सरी में बीज बोए जाते हैं, फिर 25-30 दिन बाद पौधों को खेत में रोपा जाता है।
सीधी बुवाई: इसमें बीज सीधे खेत में बोए जाते हैं।
धान का सिंचाई प्रबंधन
धान की खेती में पानी का सही प्रबंधन जरूरी है। खेत में 5-7 सेंटीमीटर पानी हमेशा बनाए रखना चाहिए। बाढ़ सिंचाई और ड्रिप सिंचाई का उपयोग किया जा सकता है।
धान की खेती में उर्वरक और पोषण
अधिक पैदावार के लिए उर्वरक का सही उपयोग आवश्यक है। धान की फसल को मुख्यतः नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की आवश्यकता होती है। किसानों को मिट्टी की जाँच के बाद उर्वरक की मात्रा
तय करनी चाहिए।
प्रयास करें की नव्यकोष जैविक उर्वरक का इस्तेमाल करें जिससे धान की फसल भी बढ़िया होगी और
मिट्टी की उर्वरता भी कम नहीं होगी। साथ ही साथ पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।
धान की खेती में रोग और कीट प्रबंधन
धान की फसल में कई तरह के रोग और कीट लग सकते हैं। इनमें से प्रमुख हैं: ब्लास्ट, ब्लाइट, बी.एच.पी और फॉल आर्मीवर्म। किसानों को इनसे बचाव के लिए जैविक और रासायनिक विधियों का उपयोग करना चाहिए।
जैविक विधि: नीम के तेल का छिड़काव, ट्राइकोडर्मा का उपयोग।
रासायनिक विधि: प्रमाणित कीटनाशकों का सही मात्रा में उपयोग।
प्रयास करें की रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग कम से कम करें, और किसी कृषि विशेषज्ञ की सलाह
से ही रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें।
धान की कटाई और भंडारण
धान की कटाई सही समय पर करनी चाहिए ताकि दानों की गुणवत्ता बनी रहे। कटाई के बाद धान को अच्छी तरह सुखाकर सुरक्षित स्थान पर भंडारण करना चाहिए। प्लास्टिक के बोरों का उपयोग भंडारण के लिए किया जा सकता है।
धान की खेती में आधुनिक तकनीक का उपयोग
आजकल कृषि में नई तकनीकों का उपयोग हो रहा है। ड्रोन से फसल की निगरानी, स्मार्टफोन ऐप से मौसम की जानकारी और सेंसर तकनीक से सिंचाई प्रबंधन किसानों के लिए फायदेमंद हैं।
धान की अधिक पैदावार के लिए सही किस्म का चयन, उचित भूमि और जल प्रबंधन, सही समय पर उर्वरक और कीटनाशकों का उपयोग, और आधुनिक तकनीक का अपनाना आवश्यक है।
भारतीय किसान ऊपर दिए गए इन सरल तरीकों को अपनाकर धान की अधिक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं और अपनी मेहनत का सही फल पा सकते हैं।
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