जून में बोई जाने वाली फसलें और सब्जियां
- LCB Fertilizers
- May 27
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जून का महीना भारत में खरीफ फसलों की शुरुआत का समय होता है। इस समय मानसून की शुरुआत हो रही होती है, जिसके कारण खेतों में नमी बढ़ती है और तापमान भी कुछ हद तक कम होता है।
यह समय उन फसलों और सब्जियों की बुवाई के लिए उपयुक्त है जो गर्मी और बारिश दोनों को सहनकर सकती हैं।
ज्यादातर किसान इस मौसम में धान, मक्का, बाजरा, और भिंडी जैसी लोकप्रिय फसलों की बुवाई करते हैं। लेकिन कुछ कम लोकप्रिय फसलें और सब्जियां भी हैं जो जून में बोई जा सकती हैं और अच्छा मुनाफा दे सकती हैं।
आज हम ऐसी ही फसलों और सब्जियों की जानकारी देंगे जो जून के महीने में बोई जा सकती हैं।
जून का मौसम और खेती की तैयारी
भारत में जून का महीना गर्मी और मानसून के मिश्रण का समय होता है। उत्तर भारत में तापमान 35-40 डिग्री सेल्सियस तक रहता है, जबकि दक्षिण भारत में मानसून की शुरुआत हो चुकी होती है।
मौसम विभाग के अनुसार, जून के अंत तक देश के ज्यादातर हिस्सों में बारिश शुरू हो जाती है। इस समय खेतों में नमी बढ़ने से बुवाई के लिए अच्छा माहौल बनता है।
लेकिन कम लोकप्रिय फसलों को बोने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
मिट्टी की तैयारी: खेत को अच्छे से जुताई करें ताकि मिट्टी ढीली हो जाए। जल निकासी की व्यवस्था करें, क्योंकि ज्यादा बारिश से खेत में पानी भर सकता है।
बीज की गुणवत्ता: हमेशा प्रमाणित और उन्नत किस्म के बीज चुनें।
सिंचाई की व्यवस्था: अगर मानसून देरी से आता है, तो सिंचाई की सुविधा तैयार रखें।
खाद और उर्वरक: नव्यकोष जैविक खाद, गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट का उपयोग करें।
कम लोकप्रिय फसलें और सब्जियां जो जून में बोई जा सकती हैं
यहां हम कुछ ऐसी फसलों और सब्जियों की बात करेंगे जो जून में बोई जा सकती हैं, लेकिन आमतौर पर इन्हें कम लोग उगाते हैं। ये फसलें न केवल कम लागत में अच्छा मुनाफा देती हैं, बल्कि बाजार में इनकी मांग भी बढ़ रही है।
1. ग्वार फली (Cluster Beans)
ग्वार फली खरीफ सीजन की एक कम लोकप्रिय लेकिन उपयोगी फसल है। यह सूखा सहन करने वाली फसल है और कम बारिश वाले क्षेत्रों में भी अच्छी तरह उगती है। ग्वार की खेती राजस्थान, हरियाणा, और गुजरात में ज्यादा होती है, लेकिन इसे देश के अन्य हिस्सों में भी उगाया जा सकता है।
बुवाई का समय: जून के पहले हफ्ते से जुलाई के पहले हफ्ते तक।
मिट्टी: रेतीली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है। जल निकासी वाली मिट्टी में ग्वार अच्छी उपज देता है।
उन्नत किस्में: आरजीसी-936, आरजीसी-1003, और एचजी-365।
लाभ: ग्वार की फलियां सब्जी के रूप में उपयोग होती हैं। इसके बीजों से ग्वार गम बनता है, जिसका उपयोग खाद्य और औद्योगिक क्षेत्र में होता है। यह मिट्टी में नाइट्रोजन को बढ़ाने में भी मदद करता है।
देखभाल: बुवाई से पहले बीज को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें। ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती, लेकिन खेत में जलभराव से बचें।
2. कुल्फा (Purslane)
कुल्फा एक कम लोकप्रिय पत्तेदार सब्जी है जो जून में आसानी से बोई जा सकती है। यह गर्मी और नमी दोनों को सहन कर सकती है और भारत के कई हिस्सों में, खासकर उत्तर प्रदेश, बिहार, और मध्य प्रदेश में, इसे स्थानीय स्तर पर उगाया जाता है। कुल्फा पौष्टिक होती है और इसका उपयोग सलाद, सब्जी, या चटनी के रूप में होता है।
बुवाई का समय: जून के पहले या दूसरे हफ्ते में।
मिट्टी: रेतीली या दोमट मिट्टी उपयुक्त है। यह कम उपजाऊ मिट्टी में भी अच्छी तरह उगती है।
उन्नत किस्में: स्थानीय किस्में जैसे देसी कुल्फा या हाइब्रिड किस्में उपलब्ध हैं। स्थानीय कृषि केंद्र से बीज लें।
लाभ: कुल्फा 30-40 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। यह विटामिन और खनिजों से भरपूर होती है, जिससे इसकी मांग शहरी क्षेत्रों में बढ़ रही है।
देखभाल: बीज को 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोएं। नियमित सिंचाई और खरपतवार नियंत्रण जरूरी है।
3. कंगनी (Foxtail Millet)
कंगनी एक पारंपरिक अनाज फसल है जो भारत में कम लोकप्रिय है, लेकिन इसके पौष्टिक गुणों के कारण इसकी मांग बढ़ रही है। यह कम पानी और कम उर्वरक में उगने वाली फसल है, जो जून के मानसून मौसम के लिए उपयुक्त है। यह राजस्थान, कर्नाटक, और तमिलनाडु में स्थानीय स्तर पर उगाई जाती है।
बुवाई का समय: जून के मध्य से जुलाई तक।
मिट्टी: रेतीली या हल्की दोमट मिट्टी सर्वोत्तम है। यह सूखा सहन करने में सक्षम है।
उन्नत किस्में: सिया-2644, सिया-3156, और धनशक्ति।
लाभ: कंगनी के दाने पौष्टिक होते हैं और इसका उपयोग रोटी, खिचड़ी, या दलिया बनाने में होता है। यह 3-4 महीने में तैयार हो जाती है।
देखभाल: बुवाई के समय 8-10 किलो बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त है। खरपतवार नियंत्रण और नियमित नमी बनाए रखें।
4. ककड़ी (Armenian Cucumber)
ककड़ी, जिसे दौलत बेग या लंबी खीरा भी कहा जाता है, एक कम लोकप्रिय सब्जी है जो जून में बोई जा सकती है। यह उत्तर भारत और पूर्वी भारत में स्थानीय स्तर पर उगाई जाती है, लेकिन इसका प्रचलन कम है।
बुवाई का समय: जून के पहले हफ्ते से मध्य तक।
मिट्टी: हल्की दोमट मिट्टी या रेतीली मिट्टी उपयुक्त है।
उन्नत किस्में: पूसा उदय, स्थानीय देसी ककड़ी।
लाभ: ककड़ी 40-50 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इसे सलाद और सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है।
देखभाल: बीज को 2-3 सेंटीमीटर गहराई में बोएं। बेल को सहारा देने के लिए लकड़ी का ढांचा बनाएं। नियमित सिंचाई करें।
5. मेथी (Fenugreek)
मेथी एक पत्तेदार सब्जी और मसाले के रूप में उपयोग होती है। यह जून में बोई जा सकती है और कम समय में तैयार हो जाती है।
बुवाई का समय: जून के मध्य से अंत तक।
मिट्टी: दोमट या रेतीली मिट्टी उपयुक्त है।
उन्नत किस्में: पूसा अर्ली बंचिंग, राजेंद्र क्रांति, और हिसार सोनाली।
लाभ: मेथी की पत्तियां 20-30 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। इसे बारिश के मौसम में आसानी से उगाया जा सकता है।
देखभाल: बीज को 1-2 सेंटीमीटर गहराई में बोएं। खेत में ज्यादा पानी नहीं भरना चाहिए।
6. परवल (Pointed Gourd)
परवल एक बेल वाली सब्जी है जो जून में बोई जा सकती है। यह उत्तर भारत में कम लोकप्रिय है, लेकिन बिहार, पश्चिम बंगाल, और ओडिशा में इसकी अच्छी मांग है।
बुवाई का समय: जून से जुलाई तक।
मिट्टी: अच्छी जल निकासी वाली दोमट मिट्टी।
उन्नत किस्में: स्वर्ण रेखा, स्वर्ण अलौकिक, और राजेंद्र परवल-1।
लाभ: परवल की फसल 8-9 महीने तक उपज देती है। बाजार में इसकी कीमत अच्छी मिलती है।
देखभाल: बीज को रात भर भिगोकर बोएं ताकि अंकुरण बेहतर हो। बेल को सहारा देने के लिए लकड़ी या बांस का ढांचा बनाएं।
7. टिंडा (Indian Round Gourd)
टिंडा एक कम लोकप्रिय सब्जी है जो उत्तर भारत में जून में बोई जा सकती है। यह कम समय में तैयार होती है और बाजार में अच्छी मांग रखती है।
बुवाई का समय: जून के पहले हफ्ते से मध्य तक।
मिट्टी: रेतीली दोमट मिट्टी उपयुक्त है।
उन्नत किस्में: पूसा टिंडा, अर्का टिंडा।
लाभ: टिंडा 40-50 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसे छोटे खेतों में भी उगाया जा सकता है।
देखभाल: नियमित सिंचाई करें और खरपतवार को हटाते रहें।
जून में मौसम के हिसाब से खेती की सावधानियां
जून में खेती करते समय भारतीय मौसम की कुछ खास बातों का ध्यान रखना जरूरी है:
मानसून की अनिश्चितता: अगर बारिश देरी से होती है, तो सिंचाई की व्यवस्था रखें। खेत में जल निकासी की व्यवस्था करें ताकि ज्यादा बारिश से फसल खराब न हो।
कीट और रोग: मानसून के समय फफूंद जनित रोग और कीटों का खतरा बढ़ता है। जैविक कीटनाशकों का उपयोग करें और फसल की नियमित जांच करें।
मिट्टी का स्वास्थ्य: नव्यकोष जैविक खाद और हरी खाद का उपयोग करें। ग्वार जैसी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन बढ़ाती हैं, जो अगली फसल के लिए फायदेमंद है।
कम लोकप्रिय फसलें उगाने के फायदे
कम लागत: ये फसलें कम पानी और उर्वरक में उगती हैं, जिससे खेती की लागत कम होती है।
बाजार में मांग: शहरी क्षेत्रों में कुल्फा, ककड़ी, और कंगनी जैसी फसलों की मांग बढ़ रही है।
मिट्टी की उर्वरता: ग्वार जैसी फसलें मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं।
जलवायु अनुकूलता: ये फसलें गर्मी और बारिश दोनों को सहन कर सकती हैं, जो जून के मौसम के लिए उपयुक्त है।
जून का महीना भारतीय किसानों के लिए नई संभावनाओं का समय है। कम लोकप्रिय फसलें और सब्जियां जैसे ग्वार, कुल्फा, कंगनी, ककड़ी, मेथी, परवल, और टिंडा न केवल खेती की लागत कम करते हैं, बल्कि अच्छा मुनाफा भी दे सकते हैं।
इन फसलों को बोने से पहले खेत की अच्छी तैयारी, उन्नत बीजों का चयन, और मौसम के हिसाब से देखभाल जरूरी है।
अगर आप इन फसलों को सही तरीके से उगाते हैं, तो न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि मिट्टी की सेहत भी सुधार सकते हैं।
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