
मटर (Peas) एक प्रमुख फसल है जिसे भारत में सर्दियों के मौसम में उगाया जाता है। मटर की खेती से किसानों को अच्छा आर्थिक लाभ होता है और यह पोषण की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
आज हम आपको भारतीय जलवायु और मौसम की परिस्थितियों को ध्यान में रखकर, मटर की खेती कब और कैसे की जाती है ये विस्तार से बताएँगे ।
मटर की खेती के लिए सही समय
मटर ठंडे मौसम की फसल है और इसे रबी सीजन में उगाया जाता है। इसको उगाने का सही समय और तापमान निम्नलिखित अनुसार है:
मटर के बीज बोने का सही समय:
उत्तरी भारत में मटर की बुआई अक्टूबर के मध्य से नवंबर के अंत तक की जाती है। यदि जलवायु ठंडी और नमी वाली है, तो देरी से बुआई नुकसानदेह हो सकती है।
तापमान की आवश्यकता:
मटर के अंकुरण और विकास के लिए 18-25°C तापमान आदर्श होता है। अधिक गर्मी फसल को प्रभावित कर सकती है, इसलिए ठंडे मौसम में बुआई करें।
मटर की खेती के लिए मिट्टी और खेत की तैयारी
मटर उगाने के लिए उपयुक्त मिट्टी:
मटर दोमट मिट्टी (Loamy Soil) में अच्छा परिणाम देती है। मिट्टी उपजाऊ और जल निकासी की सुविधा से युक्त होनी चाहिए। मिट्टी का पीएच स्तर 6.0-7.5 के बीच होना चाहिए है।
मटर उगाने के लिए खेत की तैयारी:
बुआई से पहले खेत की गहरी जुताई करें।
जैविक खाद जैसे नव्यकोष जैविक खाद डालें। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में मदद करेगा।
खेत को समतल बनाएं और मिट्टी के बड़े ढेलों को तोड़ दें।
मटर के बीज का चयन और बीज उपचार
उन्नत किस्में का चयन:
किसानों को मटर की उन्नत और स्थानीय जलवायु के अनुकूल किस्मों का चयन करना चाहिए। कुछ लोकप्रिय किस्में हैं:
पूसा प्रगति
अर्का केलिक
जय मटर-1
बीज उपचार विधि:
बीज बोने से पहले उन्हें जैविक फफूंदनाशक (Trichoderma) से उपचारित करें। यह बीज को रोगों से बचाने में मदद करेगा और अंकुरण दर बढ़ाएगा।
मटर की बुआई का तरीका
मटर बुआई की विधि:
मटर की बुआई आम तौर पर छिटकाव विधि से की जाती है।
पंक्तियों के बीच 30-40 सेंटीमीटर की दूरी और पौधों के बीच 10-15 सेंटीमीटर की दूरी रखें।
बीज को 3-5 सेंटीमीटर गहराई में बोएं।
बीज की मात्रा:
1 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए 80-100 किलोग्राम मटर का बीज पर्याप्त होता है।
मटर की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन
बुआई के समय नव्यकोष जैविक खाद का उपयोग करें। जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है और उत्पादन में सुधार करती है।
रासायनिक उर्वरक के प्रयोग से बचें इससे मिट्टी की उर्वरता शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
मटर की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन
पहली सिंचाई: बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें।
सिंचाई का समय: ठंडे मौसम में मटर की फसल को 2-3 सिंचाई की आवश्यकता होती है। फूल और फली बनने के समय सिंचाई आवश्यक है।
सिंचाई का ध्यान: खेत में जल जमाव न होने दें।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार हटाना: खरपतवार मटर की फसल की वृद्धि में बाधा डालते हैं। हाथ से निराई या खरपतवारनाशी का उपयोग करें।
पहली निराई: बुआई के 20-25 दिन बाद पहली निराई करें।
दूसरी निराई: फसल के 40-45 दिन बाद दूसरी निराई करें।
मटर की फसल में कीट और रोग प्रबंधन
मटर की फसल के मुख्य कीट:
पत्ती मोड़क कीट (Leaf Miner) फसल को नुकसान पहुंचाता है। इससे छुटकारा पाने हेतु जैविक कीटनाशक जैसे नीम का तेल (Neem Oil) का छिड़काव करें।
मटर की फसल के मुख्य रोग:
झुलसा रोग (Blight): रोगग्रस्त पौधों को हटाएं और जैविक कवकनाशक का उपयोग करें।
पाउडरी मिल्ड्यू (चूर्णिल फफूंद): सल्फर आधारित कवकनाशक का उपयोग करें।
मटर की फसल कटाई और उपज
फसल कटाई का समय:
मटर की फसल बुआई के 80-100 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाती है।
मटर की फसल के पकने पर उसकी फलियां हरी, मुलायम और चमकदार होती हैं।
उपज:
आम तौर पर 1 हेक्टेयर में 100-150 क्विंटल हरी मटर फलियां प्राप्त होती हैं।
सूखे दाने के लिए उपज 15-20 क्विंटल तक हो सकती है।
मटर की खेती के फायदे
आर्थिक लाभ: मटर की खेती कम लागत में अधिक मुनाफा देती है।
मिट्टी की उर्वरता: मटर नाइट्रोजन स्थिरीकरण करती है, जिससे मिट्टी उपजाऊ बनती है।
स्वास्थ्य लाभ: मटर प्रोटीन और पोषण से भरपूर होता है।
मटर की खेती भारतीय किसानों के लिए एक फायदेमंद विकल्प है। सही समय पर बुआई, उचित खेत प्रबंधन, और जैविक तरीकों का पालन करके मटर की अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।
किसान मटर की खेती को अपनाकर न केवल अपनी आय बढ़ा सकते हैं, बल्कि मिट्टी की उर्वरता को भी बनाए रख सकते हैं।
आशा है, आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी से मटर की खेती करने में सहायता प्राप्त होगी।
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