भिंडी की खेती कब और कैसे करें?
- Rajat Kumar
- Jul 29
- 3 min read

भिंडी, जिसे अंग्रेजी में लेडी फिंगर या ओकरा कहते हैं, भारत में एक लोकप्रिय सब्जी फसल है।
भारतीय मौसम और मिट्टी की परिस्थितियों में भिंडी की खेती आसानी से की जा सकती है, बशर्ते सही समय, तकनीक और देखभाल का ध्यान रखा जाए।
आज हम भारतीय किसानों के लिए भिंडी की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देंगे। जैसे की भिंडी की खेती कब शुरू करें, इसे कैसे करें, और किन बातों का ध्यान रखें ताकि कम लागत में ज्यादा उत्पादन मिले।
आगे की चर्चा में हम भिंडी की खेती के हर पहलू को कवर करेंगे, जैसे खेत का चयन, बीज की बुआई, खाद और उर्वरक का उपयोग, कीट नियंत्रण, और फसल की कटाई। साथ ही, हम उन सवालों के जवाब भी देंगे जो एक किसान के मन में भिंडी की खेती को लेकर हो सकते हैं।
भिंडी की खेती का समय
भिंडी एक गर्म मौसम की फसल है, जो भारत के विभिन्न मौसमी क्षेत्रों में उगाई जा सकती है। भारत में भिंडी की खेती मुख्य रूप से दो मौसमों में की जाती है:
गर्मी का मौसम (फरवरी-मार्च):
यह भिंडी की खेती का सबसे अच्छा समय है, खासकर उत्तर भारत, मध्य भारत, और पश्चिमी भारत में। इस समय तापमान 20-35 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है, जो भिंडी के अंकुरण और विकास के लिए आदर्श है।
फरवरी-मार्च में बुआई करने से फसल मई-जून तक तैयार हो जाती है, जब बाजार में भिंडी की मांग और कीमत अच्छी होती है।
इस मौसम में बुआई करने से बारिश के मौसम से पहले फसल की कटाई पूरी हो जाती है, जिससे नमी से होने वाली समस्याएं कम होती हैं।
बरसात का मौसम (जून-जुलाई):
दक्षिण भारत और कुछ पूर्वी राज्यों में, जहां गर्मी बहुत अधिक नहीं होती, बरसात के मौसम में भी भिंडी की खेती की जाती है।
इस समय बुआई करने से फसल सितंबर-अक्टूबर तक तैयार होती है। लेकिन, बरसात के मौसम में जलभराव और कीट-रोग की समस्या ज्यादा हो सकती है, इसलिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।
अगर आप बरसात के मौसम में खेती कर रहे हैं, तो रोग-प्रतिरोधी हाइब्रिड किस्मों का चयन करें।
ध्यान दें: एक ही खेत में लगातार दो मौसमों तक भिंडी की खेती न करें। उदाहरण के लिए, अगर आपने बरसात में भिंडी उगाई है, तो अगले फरवरी-मार्च में उसी खेत में भिंडी न लगाएं। इससे पौधों में पीलापन और जड़ों में नीमाटोड (निमटोड) की समस्या हो सकती है।
क्षेत्र के हिसाब से भिंडी की खेती का समय:
उत्तर भारत (उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा): फरवरी-मार्च और जून-जुलाई
दक्षिण भारत (तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश): जनवरी-फरवरी और जून-अगस्त
पूर्वी भारत (बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा): फरवरी-मार्च और जुलाई-अगस्त
पश्चिमी भारत (गुजरात, महाराष्ट्र): जनवरी-मार्च और जून-जुलाई
किसानों को अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी की स्थिति के आधार पर बुआई का समय तय करना चाहिए। अगर आप निश्चित नहीं हैं, तो स्थानीय कृषि विभाग या अनुभवी किसानों से सलाह लें।
भिंडी की फसल कितने दिन में आती है?
भिंडी की फसल का समय उसकी किस्म, मौसम, और देखभाल पर निर्भर करता है। सामान्य तौर पर:
अंकुरण: बीज बोने के 5-7 दिन बाद पौधे अंकुरित हो जाते हैं, अगर मिट्टी में नमी और तापमान सही हो।
फूल आने का समय: बुआई के 35-45 दिन बाद पौधों में फूल आने शुरू होते हैं।
फल तैयार होने का समय: फूल आने के 5-7 दिन बाद भिंडी के फल तोड़ने लायक हो जाते हैं। यानी, बुआई के लगभग 45-60 दिन बाद पहली कटाई शुरू हो सकती है।
कुल फसल अवधि: भिंडी की फसल 4-5 महीने तक उत्पादन देती है, अगर देखभाल अच्छी हो।हाइब्रिड किस्में 120-150 दिन तक फल दे सकती हैं, जबकि देसी किस्में 90-120 दिन तक चलती हैं।
भिंडी की कटाई की अवधि:
भिंडी के फल को हर 2-3 दिन में तोड़ा जाता है, क्योंकि ज्यादा पकने पर फल सख्त हो जाते हैं और बाजार में उनकी कीमत कम हो जाती है।
भिंडी के लिए एक एकड़ में 15,000-20,000 रुपये की लागत लगाकर 4-5 महीने में 3-4 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है, अगर सही तकनीक और समय का ध्यान रखा जाए।
भिंडी की खेती के लिए खेत का चयन और तैयारी करना
भिंडी की खेती में सबसे पहला कदम है सही खेत का चयन और उसकी तैयारी। गलत खेत या खराब तैयारी के कारण पौधों में पीलापन, नीमाटोड, और कम उत्पादन की समस्या हो सकती है।
खेत का चयन
मिट्टी का प्रकार: भिंडी के लिए दोमट मिट्टी सबसे अच्छी होती है, लेकिन यह रेतीली दोमट और चिकनी मिट्टी में भी उग सकती है। मिट्टी का पीएच मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए।
पीएच मान की जांच: खेत की मिट्टी का पीएच मान जांचें। इसके लिए आप स्थानीय कृषि केंद्र से पीएच टेस्ट किट ले सकते हैं या मिट्टी की जांच प्रयोगशाला में करवा सकते हैं। अगर पीएच मान ज्यादा या कम है, तो इसे सामान्य करने के लिए कृषि विशेषज्ञों की सलाह लें।
पिछली फसल: उस खेत में भिंडी न लगाएं जहां पिछले मौसम में भिंडी उगाई गई थी। इससे रोग और कीटों का खतरा बढ़ता है। इसके बजाय, उस खेत को चुनें जहां पहले गेहूं, चना, या अन्य फसलें उगाई गई हों।
खेत की तैयारी
खाद का उपयोग: नव्यकोष जैविक खाद का उपयोग करें या फिर प्रति एकड़ 2-3 ट्रॉली अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद डालें। ताजी खाद का उपयोग न करें, क्योंकि इससे कीट और रोग बढ़ सकते हैं।
जुताई: खेत को 1-2 बार गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए। अगर मिट्टी में नमी कम है, तो पहले हल्की सिंचाई करें।
मिट्टी को समतल करना: जुताई के बाद कल्टीवेटर या रोटावेटर से मिट्टी को भुरभुरी और समतल करें।
टिप: खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था करें, क्योंकि भिंडी जलभराव बर्दाश्त नहीं कर सकती।
भिंडी के बीज का चयन और बुआई करना
भिंडी के बीज का चयन
हाइब्रिड बनाम देसी किस्में: हाइब्रिड किस्में ज्यादा उत्पादन देती हैं और रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती हैं। देसी किस्मों में रोग लगने का खतरा ज्यादा होता है और उत्पादन कम मिलता है।
अनुशंसित किस्में: कुछ अच्छी हाइब्रिड किस्में हैं, जैसे राधिका (एडवांटा), सिंघम (ननहेम्स), और एनए 862 (नामधारी)। ये किस्में पीला मोज़ेक और लीफ कर्ल वायरस के प्रति प्रतिरोधी हैं।
बीज की मात्रा: प्रति एकड़ 2-3 किलो बीज पर्याप्त होता है, लेकिन यह किस्म पर निर्भर करता है।
भिंडी के बीज की बुआई
बुआई का समय: जैसा कि ऊपर बताया गया, फरवरी-मार्च या जून-जुलाई में बुआई करें।
बुआई की विधि: बेड विधि सबसे अच्छी है। 3 फीट चौड़े और 4-5 इंच ऊंचे बेड बनाएं। बेड के दोनों किनारों पर 6-7 इंच की दूरी पर बीज बोएं। लाइन से लाइन की दूरी 1.5-2 फीट रखें।
बीज की गहराई: बीज को 1-2 सेंटीमीटर गहराई पर बोएं। ज्यादा गहरा बोने से अंकुरण में देरी हो सकती है।
नमी का ध्यान: बुआई से पहले खेत में हल्की नमी होनी चाहिए। बुआई के बाद हल्की सिंचाई करें।
टिप: घनी बुआई न करें, क्योंकि इससे पौधों में शाखाएं कम निकलती हैं और फल कम लगते हैं। बेड विधि से बुआई करने से सिंचाई और कटाई आसान होती है।
खाद और उर्वरक का प्रबंधन
भिंडी की फसल को लंबे समय तक उत्पादन देने के लिए नियमित खाद और उर्वरक का उपयोग जरूरी है।
शुरुआती खाद: खेत की तैयारी के समय नव्यकोष जैविक खाद या गोबर की खाद डालें।
जैविक खाद: नव्यकोष जैविक खाद या वर्मीकम्पोस्ट या नीम की खली का उपयोग करें। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है और रोगों को कम करता है।
सूक्ष्म पोषक तत्व: अगर पौधों में पीलापन दिखे, तो सूक्ष्म पोषक तत्वों (जैसे जिंक, मैग्नीशियम) का छिड़काव करें। इसके लिए कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें।
टिप: ज्यादा रासायनिक उर्वकों का उपयोग न करें, क्योंकि इससे पौधों में पीलापन या अन्य समस्याएं हो सकती हैं। हमेशा मिट्टी की जांच के आधार पर उर्वरक डालें।
भिंडी की खेती के लिए सिंचाई का प्रबंधन
भिंडी की फसल को सही समय पर और सही मात्रा में पानी देना जरूरी है।
पहली सिंचाई: बुआई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करें ताकि बीज अंकुरित हो सकें।
नियमित सिंचाई: मिट्टी में नमी बनाए रखें। हर 5-7 दिन में हल्की सिंचाई करें, खासकर गर्मी के मौसम में। बरसात में सिंचाई की जरूरत कम हो सकती है, लेकिन जलभराव से बचें।
जलभराव से बचाव: ज्यादा पानी देने से पौधों की जड़ें सड़ सकती हैं और पीलापन आ सकता है। बेड विधि से बुआई करने से जल निकासी आसान होती है।
टिप: ड्रिप इरिगेशन का उपयोग करें, अगर संभव हो। इससे पानी की बचत होती है और पौधों को सही मात्रा में पानी मिलता है।
भिंडी की खेती में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार भिंडी की फसल के लिए सबसे बड़ी समस्या हो सकते हैं, क्योंकि वे पौधों के पोषक तत्वों को चुरा लेते हैं।
शुरुआती नियंत्रण: बुआई के 24-36 घंटे के अंदर प्रति एकड़ 1 लीटर पेंडिमेथालिन को 150-200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। इससे शुरुआती खरपतवार नहीं उगेंगे।
निराई-गुड़ाई: अगर खरपतवार दिखें, तो बुआई के 20-25 दिन बाद हल्की निराई-गुड़ाई करें। ध्यान रखें कि पौधों की जड़ों को नुकसान न हो।
जैविक नियंत्रण: मल्चिंग (पुआल या प्लास्टिक शीट का उपयोग) से भी खरपतवार को कम किया जा सकता है।
टिप: खरपतवार नियंत्रण में देरी न करें, क्योंकि यह फसल की वृद्धि और उत्पादन को प्रभावित करता है।
भिंडी की खेती में कीट और रोग नियंत्रण
भिंडी की फसल में कई तरह के कीट और रोग लग सकते हैं, जैसे पीला मोज़ेक वायरस, लीफ कर्ल वायरस, फल छेदक कीट, और नीमाटोड। इनका समय पर नियंत्रण जरूरी है।
कीट नियंत्रण
निवारक उपाय: बुआई के 20-25 दिन बाद से 1000 पी.पी’एम नीम तेल (75 मिली प्रति 15 लीटर पानी) का छिड़काव शुरू करें। हर 10-15 दिन में छिड़काव दोहराएं, चाहे कीट दिखें या न दिखें।
कीटों का प्रबंधन: अगर फल छेदक कीट या अन्य कीट दिखें, तो जैविक कीटनाशक (जैसे बी.टी या नीम आधारित उत्पाद) का उपयोग करें। रासायनिक कीटनाशकों का उपयोग कम से कम करें और विशेषज्ञ की सलाह लें।
निगरानी: पौधों की नियमित जांच करें। अगर पत्तियों में छेद, पीला रंग, या फलों में नुकसान दिखे, तो तुरंत उपाय करें।
रोग नियंत्रण
पीला मोज़ेक वायरस: रोग-प्रतिरोधी हाइब्रिड किस्में चुनें। अगर रोग दिखे, तो प्रभावित पौधों को हटाकर नष्ट करें।
नीमाटोड: खेत में नव्यकोष जैविक खाद या गोबर की सड़ी खाद और नीम की खली डालें। लगातार एक ही खेत में भिंडी न उगाएं।
फफूंद रोग: ज्यादा नमी से फफूंद रोग हो सकते हैं। जल निकासी का ध्यान रखें और जरूरत पड़ने पर फफूंदनाशक (जैसे मैनकोजेब) का उपयोग करें।
टिप: एक ही कीटनाशक या फफूंदनाशक का बार-बार उपयोग न करें, क्योंकि इससे कीटों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो सकती है।
भिंडी की कटाई और भंडारण
कटाई का समय: भिंडी के फल जब 5-7 सेंटीमीटर लंबे और नरम हों, तब तोड़ें। यह आमतौर पर बुआई के 45-60 दिन बाद शुरू होता है। हर 2-3 दिन में कटाई करें।
कटाई की विधि: फलों को चाकू या कैंची से सावधानी से काटें ताकि पौधे को नुकसान न हो। सख्त या ज्यादा पके फल बाजार में कम कीमत पर बिकते हैं।
भंडारण: भिंडी को ताजा रखने के लिए ठंडी और सूखी जगह पर स्टोर करें। इसे प्लास्टिक बैग में रखकर 2-3 दिन तक ताजा रखा जा सकता है। लंबे समय के लिए फ्रिज में स्टोर करें।
टिप: सुबह के समय कटाई करें, जब फल ताजा और रसीले होते हैं। बाजार में भेजने से पहले फलों को साफ करें और सही तरीके से पैक करें।
भिंडी की खेती में मुनाफा कैसे कमाएं?
भिंडी की खेती कम लागत में अच्छा मुनाफा दे सकती है, अगर सही तकनीक अपनाई जाए। एक एकड़ में भिंडी की खेती की लागत लगभग 15,000-20,000 रुपये होती है, जिसमें बीज, खाद, उर्वरक, कीटनाशक, और मजदूरी शामिल है। अगर सही देखभाल की जाए, एक एकड़ में भिंडी की खेती से 4-5 महीने में 3-4 लाख रुपये तक का मुनाफा कमाया जा सकता है।
मुनाफा बढ़ाने के टिप्स
1. बाजार की मांग: भिंडी की मांग गर्मी और बरसात के मौसम में ज्यादा होती है। सही समय पर फसल तैयार करें ताकि अच्छी कीमत मिले।
2. हाइब्रिड किस्में: ये ज्यादा उत्पादन देती हैं और रोगों से कम प्रभावित होती हैं, जिससे लागत कम होती है।
3. जैविक खेती: जैविक भिंडी की मांग बढ़ रही है। नीम तेल, नव्यकोष जैविक खाद या गोबर की खाद, और वर्मीकम्पोस्ट का उपयोग करें।
4. सीधे बिक्री: अगर संभव हो, तो स्थानीय बाजार या सब्जी मंडी में सीधे बेचें ताकि बिचौलियों का खर्च बचे।
भिंडी की खेती में सामान्य समस्याएं और उनके समाधान
पौधों में पीलापन:
कारण: गलत मिट्टी (पीएच मान असंतुलित), ज्यादा पानी, या पोषक तत्वों की कमी।
समाधान: मिट्टी का पीएच 6-7 रखें, जलभराव से बचें, और सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव करें।
कम फल लगना:
कारण: घनी बुआई, खराब किस्म, या पोषण की कमी।
समाधान: सही दूरी पर बुआई करें, हाइब्रिड किस्में चुनें, और नव्यकोष जैविक खाद का उपयोग करें।
कीट और रोग:
कारण: समय पर नियंत्रण न करना।
समाधान: नीम तेल का नियमित छिड़काव करें और रोग-प्रतिरोधी किस्में चुनें।
भिंडी की खेती भारतीय किसानों के लिए एक लाभकारी व्यवसाय हो सकता है, अगर इसे सही समय और सही तरीके से किया जाए।
फरवरी-मार्च या जून-जुलाई में भिंडी की बुआई करें, सही खेत की तैयारी, हाइब्रिड किस्मों का चयन, और नियमित देखभाल से आप कम लागत में अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं।
खरपतवार, कीट, और रोगों का समय पर नियंत्रण, साथ ही सही सिंचाई और उर्वरक प्रबंधन, भिंडी की फसल को और बेहतर बनाएगा।
ऊपर दी गई जानकारी को अपनाकर आप भिंडी की खेती में सफलता पा सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। अगर आपके मन में भिंडी की खेती से सम्बंधित कोई सवाल है, तो स्थानीय कृषि विशेषज्ञों से संपर्क करें।
Comments