मंडुआ/महुआ की खेती कब और कैसे करें?
- Rajat Kumar
- Aug 7
- 2 min read

मंडुआ या महुआ, जिसे अंग्रेजी में रागी (Finger Millet) कहा जाता है, एक पौष्टिक और कम लागत वाली फसल है।
मंडुआ/महुआ की फसल कम पानी और कम उर्वरक में भी अच्छी पैदावार देती है, जिसके कारण यह छोटे और सीमांत किसानों के लिए बहुत फायदेमंद है।
रागी को "पोषक अनाज" के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह प्रोटीन, कैल्शियम, और अन्य पोषक तत्वों से भरपूर होता है। यह ग्लूटेन-मुक्त होता है, जिससे यह मधुमेह रोगियों और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक लोगों के लिए खास है।
आज हम आपको भारतीय मौसम और मिट्टी की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए रागी (मंडुआ/महुआ ) की खेती के बारे में पूरी जानकारी देंगे।
हम यह भी बताएंगे कि मंडुआ/महुआ की खेती कब और कैसे करें, फसल कितने दिन में तैयार होती है, और इसे उगाने की पूरी प्रक्रिया आदि भी बताएंगे।
मंडुआ/महुआ की खेती का समय
रागी की खेती का समय भारत के विभिन्न क्षेत्रों और मौसम के अनुसार अलग-अलग हो सकता है।रागी को मुख्य रूप से दो मौसमों में उगाया जाता है:
खरीफ मौसम (मानसून):
समय: जून से जुलाई के मध्य तक, जब मानसून की बारिश शुरू होती है।
क्षेत्र: यह समय उत्तर भारत, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, और पूर्वी राज्यों के लिए उपयुक्त है। मानसून की बारिश रागी के लिए जरूरी नमी प्रदान करती है।
विशेषता: इस मौसम में रागी की सीधी बुवाई की जाती है, क्योंकि खेत में पर्याप्त नमी होती है।
रबी मौसम:
समय: फरवरी से मार्च के अंत तक।
क्षेत्र: यह समय दक्षिण भारत (कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश) और कुछ उत्तरी क्षेत्रों में उपयुक्त है, जहां तापमान मध्यम रहता है।
विशेषता: इस मौसम में रागी की बुवाई के लिए हल्की सिंचाई की जरूरत पड़ती है, क्योंकि बारिश कम होती है।
अपने क्षेत्र के मौसम और मिट्टी की स्थिति के अनुसार बुवाई का समय चुनें। यदि आप मानसून पर निर्भर हैं, तो जून-जुलाई में बुवाई करें। अगर आपके पास सिंचाई की सुविधा है, तो फरवरी-मार्च में बुवाई शुरू कर सकते हैं।
रागी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु और मिट्टी
रागी की खेती के लिए सही जलवायु और मिट्टी का चयन बहुत जरूरी है। यह फसल कम संसाधनों में भी अच्छी पैदावार देती है, लेकिन कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए:
जलवायु:
रागी गर्म और मध्यम जलवायु में अच्छी तरह उगती है। यह 20-35 डिग्री सेल्सियस तापमान में अच्छा प्रदर्शन करती है।
यह कम पानी वाली फसल है, इसलिए सूखा प्रभावित क्षेत्रों और पहाड़ी इलाकों में भी इसे उगाया जा सकता है।
36 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान में फूलों के समय परागण प्रभावित हो सकता है।
मिट्टी:
रागी के लिए भुरभुरी और अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी सबसे अच्छी होती है।
लाल, दोमट, या रेतीली मिट्टी उपयुक्त है।
मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7.5 के बीच होना चाहिए।
भारी और चिकनी मिट्टी में रागी की खेती से बचें, क्योंकि इसमें अंकुरण कमजोर हो सकता है।
खेत की मिट्टी का परीक्षण करवाएं। अगर मिट्टी भारी है तो इसे भुरभुरी बनाएं।
रागी की खेती की तैयारी
रागी की खेती शुरू करने से पहले खेत को अच्छी तरह तैयार करना जरूरी है। यह प्रक्रिया फसल की पैदावार को बढ़ाने में मदद करती है।
1. खेत की जुताई और सफाई
खेत में पुरानी फसलों के अवशेष, जैसे पत्तियां, तने, या खरपतवार, को पूरी तरह हटा दें।
गहरी जुताई करें ताकि मिट्टी अच्छी तरह पलट जाए। इसके लिए हल या ट्रैक्टर का उपयोग करें।
जुताई के बाद खेत को 5-7 दिन तक खुला छोड़ दें। सूरज की रोशनी से मिट्टी में मौजूद हानिकारक कीट और रोगाणु नष्ट हो जाएंगे।
इसके बाद 2-3 बार हल्की जुताई करें ताकि मिट्टी भुरभुरी हो जाए।
2. नव्यकोष जैविक खाद का उपयोग
नव्यकोष जैविक खाद या पुरानी गोबर की खाद (15-20 टन प्रति हेक्टेयर) डालें और इसे मिट्टी में अच्छी तरह मिलाएं।
नव्यकोष जैविक खाद मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है और रागी के पौधों को शुरुआती पोषण देती है।
3. खेत में जल निकासी
रागी को पानी की कम जरूरत होती है, लेकिन खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए।
खेत को समतल करें और पानी निकासी के लिए हल्का ढलान बनाएं।
खेत की जुताई के बाद मिट्टी को अच्छी तरह समतल करें ताकि बुवाई के समय बीज एकसमान गहराई पर जाएं।
रागी की उन्नत किस्में
रागी की खेती के लिए सही किस्म का चयन पैदावार और मौसम के अनुसार करना चाहिए। कुछ उन्नत किस्में जो भारतीय किसानों के लिए उपयुक्त हैं:
बकुला: उच्च पैदावार और गर्मी सहन करने की क्षमता।
CPU-68: कम समय में अच्छी पैदावार, खासकर खरीफ मौसम के लिए।
GB-2870: रोग प्रतिरोधी और अच्छी गुणवत्ता वाली फसल।
इंद्रावती: दक्षिण भारत के लिए उपयुक्त, कम पानी में अच्छी पैदावार।
GPU-28 और GPU-67: ये किस्में अधिक उपज और रोग प्रतिरोध के लिए जानी जाती हैं।
अपने क्षेत्र के कृषि विश्वविद्यालय या कृषि केंद्र से संपर्क करके अपने क्षेत्र के लिए अनुशंसित किस्म चुनें। प्रमाणित बीजों का उपयोग करें।
रागी की बुवाई कैसे करें
रागी की बुवाई दो तरीकों से की जा सकती है: सीधी बुवाई और रोपाई विधि। दोनों विधियों की पूरी जानकारी नीचे दी गई है।
1. सीधी बुवाई
समय: फरवरी-मार्च (रबी) या जून-जुलाई (खरीफ)।
बीज की मात्रा: 10-12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।
तरीका:
बीजों को 12 घंटे पानी में भिगोएं।
बीजों को 3 ग्राम थायरम (फफूंदनाशक) प्रति किलोग्राम की दर से उपचारित करें।
खेत में 22-25 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनें बनाएं और बीजों को 1 इंच गहराई पर बोएं।
बुवाई के बाद हल्की सिंचाई करें ताकि बीजों को नमी मिले।
लाभ: यह विधि आसान और कम समय लेने वाली है।
2. रोपाई विधि (ट्रांसप्लांटिंग)
समय: नर्सरी के लिए जून या फरवरी में शुरू करें। रोपाई 25-30 दिन बाद करें।
बीज की मात्रा: 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर (नर्सरी के लिए)।
तरीका:
नर्सरी में बीज बोएं और 25-30 दिन में जब पौधों पर 5-6 पत्तियां आ जाएं, तब रोपाई करें।
खेत में 22-25 सेंटीमीटर की दूरी पर लाइनें बनाएं और पौधों को 1 इंच गहराई पर रोपें।
रोपाई के समय खेत में हल्की नमी होनी चाहिए।
लाभ: यह विधि खरपतवार नियंत्रण और बेहतर पैदावार के लिए अच्छी है।
अगर आपके पास समय और श्रम उपलब्ध है, तो रोपाई विधि चुनें। यह विधि छोटे खेतों के लिए बेहतर है।
रागी की फसल कितने दिन में आती है
रागी की फसल की अवधि किस्म और मौसम पर निर्भर करती है। आमतौर पर:
अवधि: रागी की फसल 90 से 120 दिन में तैयार हो जाती है।
खरीफ मौसम: 90-100 दिन (जुलाई में बुवाई, अक्टूबर-नवंबर में कटाई)।
रबी मौसम: 100-120 दिन (फरवरी में बुवाई, मई-जून में कटाई)।
किस्मों का प्रभाव: कुछ जल्दी पकने वाली किस्में (जैसे GPU-28) 90 दिन में तैयार हो जाती हैं, जबकि अन्य को 120 दिन लग सकते हैं।
पैदावार: अच्छी देखभाल और उन्नत किस्मों के साथ 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल सकती है।
समय पर बुवाई और उचित देखभाल से फसल जल्दी और अच्छी पैदावार देती है।
रागी की खेती में उर्वरक प्रबंधन
रागी की खेती में उर्वरक का सही उपयोग पैदावार को बढ़ाता है। मिट्टी परीक्षण के आधार पर उर्वरक डालना सबसे अच्छा है, लेकिन सामान्य सलाह निम्नलिखित है:
जैविक खाद: नव्यकोष जैविक खाद या 10-15 टन गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट प्रति हेक्टेयर बुवाई से पहले डालें।
मिट्टी परीक्षण करवाएं ताकि उर्वरक की सही मात्रा का पता चल सके। नव्यकोष जैविक खाद का उपयोग मिट्टी की उर्वरता को लंबे समय तक बनाए रखता है।
जल प्रबंधन और सिंचाई
रागी को कम पानी की जरूरत होती है, लेकिन सही समय पर सिंचाई पैदावार बढ़ाती है।
सिंचाई की संख्या: सामान्यतः 3 सिंचाइयां पर्याप्त हैं।
टिलरिंग स्टेज (20-25 दिन बाद): पहली सिंचाई ताकि पौधों की जड़ें मजबूत हों।
पुष्पन अवस्था (बालियां निकलने का समय): दूसरी सिंचाई फूलों और दानों के विकास के लिए।
दाना भरने का समय: तीसरी सिंचाई दानों को पूरी तरह विकसित करने के लिए।
पानी की मात्रा: खेत में हल्की नमी बनाए रखें। जलभराव से बचें।
मानसून में: बारिश होने पर अतिरिक्त सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती।
अगर आपके पास ड्रिप या स्प्रिंकलर सिंचाई की सुविधा है, तो इसका उपयोग करें। यह पानी की बचत करता है।
खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार रागी की फसल को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन्हें नियंत्रित करने के लिए:
प्राकृतिक तरीका:
बुवाई या रोपाई के 20-25 दिन बाद पहली गुड़ाई करें।
15 दिन बाद दूसरी गुड़ाई करें।
गुड़ाई से खरपतवार हटते हैं और मिट्टी में हवा का संचार होता है।
रासायनिक तरीका: यदि खरपतवार ज्यादा हैं, तो कृषि विशेषज्ञ से सलाह लेकर उपयुक्त खरपतवारनाशी का उपयोग करें।
समय पर गुड़ाई करें ताकि खरपतवार पौधों के पोषक तत्व न छीनें।
रागी में रोग और कीट प्रबंधन
रागी की फसल को कुछ रोग और कीट प्रभावित कर सकते हैं। इनका प्रबंधन जरूरी है:
रोग:
ब्लास्ट रोग: फफूंदनाशक (थायरम या कार्बेन्डाजिम) से बीज उपचार करें।
स्मट रोग: रोगमुक्त बीजों का उपयोग करें।
कीट:
तना छेदक: प्रभावित पौधों को हटाकर नष्ट करें।
एफिड्स: नीम तेल या अनुशंसित कीटनाशक का छिड़काव करें।
उच्च तापमान में परागण की समस्या:
अगर तापमान 36 डिग्री सेल्सियस से अधिक है, तो 1% पोटेशियम नाइट्रेट (10 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। 600-800 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर उपयोग करें।
नियमित रूप से खेत की जांच करें और रोग या कीट दिखने पर तुरंत कृषि विशेषज्ञ से सलाह लें।
रागी की कटाई और भंडारण
कटाई का समय:
जब रागी की बालियां पूरी तरह पक जाएं और दाने सख्त हो जाएं, तब कटाई करें।
खरीफ में अक्टूबर-नवंबर और रबी में मई-जून में कटाई होती है।
तरीका:
बालियों को सावधानी से काटें और सुखाएं।
दानों को अलग करने के लिए थ्रेशिंग करें।
भंडारण:
दानों को अच्छी तरह सुखाकर नमी रहित करें।
हवादार और सूखी जगह पर जूट के बोरे या धातु के डिब्बों में भंडारण करें।
कीटों से बचाने के लिए नीम की पत्तियां या अनुशंसित कीटनाशक का उपयोग करें।
कटाई के समय मौसम साफ होना चाहिए। नमी वाले दानों को भंडारण न करें, वरना फफूंद लग सकती है।
रागी की खेती के फायदे
रागी की खेती भारतीय किसानों के लिए कई फायदे लेकर आती है:
कम लागत: रागी को कम पानी, उर्वरक, और श्रम की जरूरत होती है।
पौष्टिक फसल: रागी में प्रोटीन, कैल्शियम, और आयरन भरपूर मात्रा में होता है, जिसकी बाजार में मांग बढ़ रही है।
सूखा प्रतिरोधी: यह सूखे क्षेत्रों में भी अच्छी पैदावार देती है।
बाजार मांग: रागी के उत्पाद जैसे आटा, बिस्किट, और नूडल्स की मांग बढ़ रही है, जिससे किसानों को अच्छा मुनाफा मिलता है।
पर्यावरण के लिए फायदेमंद: रागी मिट्टी की उर्वरता बनाए रखती है और पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाती।
रागी की खेती में आम समस्याएं और समाधान
किसानों को रागी की खेती में कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इनके समाधान नीचे दिए गए हैं:
कम अंकुरण:
कारण: खराब बीज या अनुपयुक्त मिट्टी।
समाधान: प्रमाणित बीजों का उपयोग करें और मिट्टी को भुरभुरी बनाएं।
खरपतवार की समस्या:
समाधान: समय पर गुड़ाई करें और खरपतवारनाशी का उपयोग करें।
पानी की कमी:
समाधान: सही समय पर हल्की सिंचाई करें। ड्रिप सिंचाई का उपयोग करें।
रोग और कीट:
समाधान: बीज उपचार करें और नियमित खेत की निगरानी करें।
स्थानीय कृषि केंद्र से संपर्क रखें और समय-समय पर सलाह लें।
रागी की खेती में अतिरिक्त सुझाव
फसल चक्र: रागी को मूंग, उड़द, या अन्य दलहनी फसलों के साथ चक्र में उगाएं। इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है।
जैविक खेती: रासायनिक उर्वरकों की जगह नव्यकोष जैविक खाद या वर्मी कंपोस्ट और गोबर खाद का उपयोग करें।
बाजार रणनीति: रागी के उत्पादों को स्थानीय बाजार या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बेचें। रागी के आटे और प्रोसेस्ड उत्पादों की मांग बढ़ रही है।
कृषि विशेषज्ञों से सलाह: अपने क्षेत्र के कृषि विश्वविद्यालय या कृषि केंद्र से संपर्क करें।
मंडुआ/महुआ (रागी) की खेती भारतीय किसानों के लिए एक लाभकारी और टिकाऊ विकल्प है।
यह फसल कम संसाधनों में अच्छी पैदावार देती है और स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद है।
सही समय पर बुवाई, उचित मिट्टी और जल प्रबंधन, और खरपतवार-कीट नियंत्रण से आप अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं। रागी की खेती न केवल आर्थिक लाभ देती है, बल्कि मिट्टी और पर्यावरण को भी स्वस्थ रखती है।
ऊपर दी गई जानकारी को अपनाकर आप रागी की खेती को आसानी से शुरू कर सकते हैं।
अगर आपको रागी की खेती या अन्य कृषि संबंधी सलाह चाहिए, तो अपने नजदीकी कृषि केंद्र या हेल्पलाइन से संपर्क करें।
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