धान भारत की मुख्य फसल है, लेकिन इसके लिए बहुत सारे पानी की जरूरत होती है। जलवायु परिवर्तन और कम बारिश के कारण पानी की कमी होना एक बड़ी चिंता बनती जा रही है।
इसलिए आज हम चर्चा करेंगे कि भारतीय मौसम और परिस्थितियों के अनुसार कम पानी में धान की खेती कैसे की जा सकती है।
धान की सही किस्मों का चुनाव
कम पानी वाली धान की किस्में चुनें: कई कृषि अनुसंधान संस्थानों ने कम पानी में उपज देने वाली धान की किस्में विकसित की हैं। अपने क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्मों की जानकारी कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से प्राप्त करें। उदाहरण के लिए, पूसा सुगंधा, सीआर 1000, शरवती आदि कम पानी वाली लोकप्रिय धान की किस्में हैं।
बीजों का सही प्रबंधन: बुवाई से पहले बीजों को छाया में सुखाकर 24 घंटे के लिए अच्छी तरह से भिगो दें। इससे अंकुरण क्षमता बढ़ती है और कम बीजों में ही अच्छी पैदावार हो जाती है।
धान की खेती में जल प्रबंधन
सीधी बुवाई: धान की रोपाई करने के बजाय सीधी बुवाई करने से पानी की बचत होती है। इससे खेत में दरारें पड़ती हैं, जिससे हवा का संचार अच्छा होता है और पानी कम लगता है।
लेयर तकनीक: इस तकनीक में धान की रोपाई करते समय खेत में कम पानी लगाया जाता है। जब पौधे थोड़े बड़े हो जाएं, तब थोड़ा और पानी लगाया जाता है। इस तरह कम पानी में ही अच्छी पैदावार ली जा सकती है।
वानस्पतिक तनाव: धान के कुछ खास चरणों में, जैसे कि बीज बोने के बाद और दाना बनने के समय, ज्यादा पानी की जरूरत होती है। बाकी समय में खेत को थोड़ा सूखा रखने से पानी की बचत होती है।
खेत को समतल करना: खेत को अच्छी तरह से समतल करने से पानी का एक समान वितरण होता है और पानी की बर्बादी रुकती है।
मेड़ बनाना: खेत के चारों तरफ मजबूत मेड़ बनाने से पानी रिसकर बाहर नहीं जाता है और सिंचाई में आसानी होती है।
धान की खेती में मिट्टी प्रबंधन
जैविक खाद: खेत में गोबर की खाद, कम्पोस्ट या हरी खाद डालने से मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती है। इससे मिट्टी में नमी बनी रहती है और कम पानी में भी फसल अच्छी तरह से बढ़ पाती है।
मल्चिंग: खेत में पुआल या किसी अन्य कार्बनिक पदार्थ की परत बिछाने से मिट्टी का तापमान कम रहता है और नमी संरक्षित होती है। इससे पानी की बचत होती है।
धान की खेती में खरपतवार नियंत्रण
खरपतवार फसल के साथ पानी और पोषक तत्वों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसलिए समय-समय पर निराई या खरपतवार नाशक दवाओं का इस्तेमाल करें। इससे पानी की बचत होती है और फसल की पैदावार भी बढ़ती है।
धान की खेती में पोषक तत्व प्रबंधन
मिट्टी परीक्षण कराएं: बुवाई से पहले मिट्टी का परीक्षण कराएं ताकि मिट्टी में मौजूद पोषक तत्वों की मात्रा का पता चल सके। उसी के अनुसार ही खाद और उर्वरकों का प्रयोग करें। इससे पोषक तत्वों का सदुपयोग होता है और पौधों को कम पानी में भी उचित पोषण मिलता है।
संतुलित खाद प्रयोग: सिर्फ नाइट्रोजन वाली खादों का प्रयोग ना करें। संतुलित मात्रा में फास्फोरस, पोटाश और जिंक जैसी सूक्ष्म पोषक तत्व भी डालें। इससे पौधे मजबूत बनते हैं और कम पानी में भी ज्यादा उपज देते हैं।
धान की खेती में रोग और कीट नियंत्रण
फसल पर नजर रखें: नियमित रूप से खेत का निरीक्षण करें ताकि रोग या कीटों का पता जल्दी लग सके। शुरुआती अवस्था में ही जैविक कीटनाशकों या प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल करके रोग और कीटों को नियंत्रित किया जा सकता है। इससे पौधे कमजोर नहीं होते हैं और पानी की बर्बादी भी रुकती है।
बीजों का उपचार: बुवाई से पहले बीजों को उपयुक्त दवाओं से उपचारित करें। इससे बीज जनित रोगों से बचाव होता है और पौधे स्वस्थ रहकर कम पानी में भी अच्छी पैदावार देते हैं।
धान की फसल की कटाई और मड़ाई
सही समय पर कटाई करें: धान के दाने पकने पर ही कटाई करें। अधपके दानों में अंकुरण क्षमता कम होती है और भंडारण के दौरान भी दिक्कत होती है। समय पर कटाई करने से पानी की बर्बादी रुकती है।
कम पानी वाली मड़ाई तकनीकें अपनाएं: पारंपरिक मड़ाई में काफी पानी लगता है। आप कम पानी वाली मड़ाई तकनीकों, जैसे कि सुखी मड़ाई या सघन कूट पद्धति का इस्तेमाल कर सकते हैं।इससे पानी की बचत होती है और धान की गुणवत्ता भी अच्छी रहती है।
धान की खेती के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं
कई राज्य सरकारें और कृषि विभाग कम पानी में धान की खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं चलाते हैं। इन योजनाओं के तहत किसानों को सब्सिडी पर बीज, खाद और कृषि यंत्र उपलब्ध कराए जाते हैं। साथ ही, किसानों को कम पानी में धान की खेती करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जाता है।
अपने क्षेत्र के कृषि विभाग से संपर्क करके इन योजनाओं की जानकारी प्राप्त करें और उनका लाभ उठाएं।
कम पानी में धान की खेती करके जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों का सामना किया जा सकता है और पानी की बचत भी की जा सकती है।ऊपर बताए गए टिकाऊ तरीकों को अपनाकर आप कम पानी में भी अच्छी धान की पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।
साथ ही, मिट्टी की सेहत बनाए रखने और लागत कम करने में भी ये तरीके मददगार हैं। भारतीय किसानों के लिए कम पानी में धान की खेती एक स्थायी समाधान है, जिससे जलवायु के साथ तालमेल बिठाते हुए अच्छी फसल उगाई जा सकती है।
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